होशियारपुर, 22 जून (विशेष रिपोर्ट) जिला होशियारपुर के कंडी क्षेत्र में शिवालिक की हसीन वादियों की ओट में बसे ऐतिहासिक गांव कपाहट में पवित्र दुर्गा माता के मंदिर में वार्षिक जागरण और भंडारा श्रद्धा व धूमधाम से करवाया गया। मंदिर परिसर में स्थित मां दुर्गा के शक्ति पिंड में पूजा-अर्चना कर दूर-दूर से पहुँचे हजारों श्रद्धालुओं ने माथा टेक कर आशीर्वाद प्राप्त किया। प्रत्येक वर्ष जागरण और भंडारा मानसून के आस-पास करवाया जाता है, जब जून में सूर्य मिथुन राशि में प्रवेश करता है। जागरण के दौरान अलग-अलग गायकों ने मां का गुणगान करके भक्तों को मंत्र-मुग्ध करते हुए झूमने को मजबूर किया। मंदिर की मान्यता है कि अपने परिवार व बच्चों के लिए सच्चे मन से की गई प्रार्थना बहुत जल्द कबूल होती है।
इतिहास के झरोखे में कब हुआ मंदिर का शिलान्यास
विश्वसनीय सूत्रों से बातचीत के दौरान पता चला कि आज से लगभग सौ-डेढ सौ वर्ष पूर्व इस गांव की एक छोटी सी लगभग 7-8 वर्ष की बालिका अपने पिता के साथ इस जगह के आस-पास (उस समय घना जंगल) पशुओं के लिए चारा, घास व लकड़ी काटने के मकसद से साथ आ जाया करती थी। जिस जगह पर आज माता दुर्गा जी पिंडी रुप में स्थापित है उस जगह पर बालिका जब खेलते हुए पहुँचती तो अक्सर वह धार्मिक भावनाओं से ओत-प्रोत होकर मंत्र-मुग्ध हो जाती। होश में आने के बाद वह बताती कि इस जगह पर मां दुर्गा जी का त्रिशूल दबा हुआ है। यह घटना कई बार होने पर उस लड़की के पिता ने यह बात गांव में लोगों से सांझा की। कुछ लोगों ने इस घटना को मनगढ़ंत और वहम की संज्ञा ही दी। फिर गांव के कुछ जिम्मेदार व्यक्तियों ने उस बालिका के पिता के चरित्र और व्यवहार को देख कर निर्णय किया कि सच्चाई का पता लगाने हेतु उस जगह की मिल कर खुदाई की जाएगी। जब गांव वालों को वह जगह दिखाई गई तो उस जगह की 10-12 फुट की खुदाई करने पर सच में माता जी का त्रिशूल निकला। त्रिशूल देख कर मौजूद गांव वालों ने माता के जयकारे लगाने शुरु कर दिए। सभी की उपस्थिति में मां के पवित्र मंदिर का शिलान्यास रखा गया।
राजपूत परिवार के बालक ठाकुर दास बने प्रथम पुजारी
जंगल में मां दुर्गा जी का त्रिशूल मिलने के बाद उस पवित्र जगह पर माता जी का मंदिर बनाने की पुरजोर मांग गांव में उठने लगी। परन्तु प्रश्न यह था कि पूजा स्थल आबादी से 3-4 किलोमीटर घने जंगल में होने के कारण वहां पर प्रात: और संध्या काल की पूजा अर्चना कौन करेगा? जब सब असमंजस में पड़ गए तब सभी ने विचार किया कि क्यों न इस बात का हल उसी बालिका से बात करके निकाला जाए। जब उस बालिका से बात की गई तो उसके मुख-मंडल से गांव के सम्माननीय राजपूत परिवार के ठाकुर लालू राम पत्नी गुलाबी देवी के पुत्र ठाकुर दास का नाम निकला, जो कि उस समय 8 वर्ष के थे। ठाकुर दास के भाई हंस राज पत्नी चिंतो देवी उर्फ बिंद्राबंती, दलीप सिंह, पूरन चंद, जैसी राम, धनी राम और इकलौती बहन कौशल्या देवी थी। उस समय बालक ठाकुर दास पूरे इलाके में अपने धर्म-कर्म व पूजा-पाठ के कार्यों, सच्चाई, बुद्धि कौशल, विद्या, आज्ञाकारी और ईमानदारी के लिए प्रसिद्ध थे। पुजारी के रुप में ठाकुर दास का नाम आने की बात जंगल में आग की तरह फैल गई। ठाकुर दास की मां गुलाबी देवी अपने सबसे बड़े लाडले पुत्र को जंगल में भेजने काे कतई तैयार न थी परन्तु पूरे इलाके के निवेदन और पुत्र के समझाने पर पूरे रीति-रिवाज से बालक ठाकुर दास के संन्यास धारण करने पर मां दुर्गा देवी के मंदिर का प्रथम पुजारी बनाया गया। ठाकुर दास द्वारा लगभग सौ वर्ष से अधिक अविवाहित रहकर संन्यासी जीवन का निर्वाह करते हुए मंदिर की निष्काम सेवा की गई।
छबील व भंडारे का आयोजन
प्रत्येक वर्ष यहां समागम में पहुँचने वाले श्रद्धालुओं के लिए रास्ते में ठंडे व मीठे जल की छबील व भंडारे का आयोजन किया जाता है।
मंदिर में कैसे पहुँचे?
होशियारपुर से अज्जोवाल रोड पर गांव कपाहट सडक मार्ग से 15 मिनट में गाडी़ से हम पहुँच सकते है। गांव कपाहट से मां दुर्गा देवी का मंदिर लगभग 3-4 किलोमीटर पहाड़ी मार्ग की चढाई-उतराई के बाद आ जाता है। गनीमत है कि हम आजकल अपनी गाड़ी मंदिर तक ले के जा सकते है क्योंकि सन् 2015 में उस समय की मंत्री बीबी महिंदर कौर जोश द्वारा गांव से लेकर मंदिर तक पक्की सड़क का निर्माण करवा दिया गया था। गौरतलब है कि मंदिर परिसर चारों तरफ से शिवालिक की हसीन वादियों से घिरे होने के कारण रात्रि में बहुत ठंड होती है। परिवार समेत यहां आने पर एक रात यहां के आकर्षक व शांतमय वातावरण में जरुर गुजारनी चाहिए।