Firoza Gemstone Benefits: रत्न शास्त्र अनुसार हर रत्न का संबंध किसी न किसी ग्रह से जरूर होता है। मतलब रत्न उस ग्रह का प्रतिनिधित्व करते है। साथ ही रत्न धारण करने से व्यक्ति को उस ग्रह से संबंधित अशुभ परिणामों में कमी आती है। यहां हम बात करने जा रहे हैं फिरोजा रत्न के बारे में, ज्योतिष शास्त्र में इस रत्न को बेहद ही प्रभावशाली माना जाता है। बहुत ही कम लोग इस रत्न को धारण कर पाते हैं। ये बृहस्पति ग्रह का रत्न है जिसे धारण करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है। आइए जानते हैं किन लोगों को ये करता है सूट और धारण करने की सही विधि…
इन राशि वालों को करता है सूट:
आपको बता दें कि फिरोजा को अंग्रेजी में ‘टरक्वाइश’ कहते हैं। फिरोजा रत्न दिखने में गहरे नीले रंग का होता है। साथ ही देखने में आकर्षक लगता है। रत्न शास्त्र अनुसार धनु और मीन राशि के लोगों के लिए ये रत्न सबसे उपयुक्त माना जाता है। क्योंकि धनु और मीन राशि के स्वामी गुरु बृहस्पति हैं। वहीं अगर कुंडली में गुरु बृहस्पति उच्च के मतलब सकारात्मक स्थित हैं, तो भी इस रत्न को धारण किया जा सकता है। इसके साथ ही मेष, कर्क, सिंह और वृश्चिक राशि के जातक भी ये रत्न धारण कर सकते हैं। हा इस रत्न के साथ हीरा धारण नहीं करें। क्योंकि गुरु बृहस्पति और शुक्र ग्रह में शत्रुता का भाव है। वहीं नीलम इसके साथ धारण कर सकते हैं। लेकिन धारण करने से पहले किसी विशेषज्ञ की सलाह जरूर ले लें।
धारण करने से मिलते हैं ये लाभ:
रत्न शास्त्र अनुसार प्रेम संबंधों और करियर में सफलता पाने के लिए इस रत्न को धारण किया जा सकता है। इस रत्न के प्रभाव से वैवाहिक जीवन की परेशानियां भी दूर होने की मान्यता है। फिल्मी कलाकार, पेशे से आर्किटेक्चर, चिकित्सक और इंजीनियर भी इस रत्न को ज्योतिषीय सलाह से धारण कर सकते हैं। ये रत्न लोकप्रियता व मित्रता में भी बढ़ोत्तरी करता है। छात्रों के लिए यह रत्न बहुत ही लाभदायक होता है, इसे धारण करने से बौद्धिक क्षमता का विकास होता है तथा स्मरणशक्ति बढ़ती है। साथ ही इसको धारण करने से व्यक्ति के आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
इस विधि से करें धारण:
फिरोजा रत्न शुक्रवार, गुरुवार या फिर शनिवार के दिन भी धारण कर सकते हैं। इस रत्न का धारण करने का सबसे शुभ समय सुबह 6 बजे से 8 बजे तक होता है। इस रत्न को चांदी या तांबा किसी भी धातु में पहना जा सकता है। इसे पहनने से एक रात पहले दूध, शहद, मिश्री और गंगाजल मिश्रित घोल में इसे डालकर रख दें। फिर अगले दिन स्नान कर पूजा करने के बाद इस रत्न को धारण कर लें। इसे धारण करने के बाद आप गुरु बृहस्पति का दान भी निकालें और उस दान को किसी भी मंदिर के पुजारी को चरण स्पर्श करके दे आएं।